Sunday, March 25, 2012
प्राक्कथन
कविता कहानियाँ कहना संभवतः मेरी रूचि नहीं, मुझे बस हिंदी से लगाव है. दुर्भाग्य की बात है कि हिंदी का कोई सर्वमान्य मानक स्वरुप निर्धारित नहीं हो सका है; और जो हुआ, उसमें समय-समय पर बदलाव होते रहे. कभी अंग्रेजी के शब्दों से भरे हुए हिंदी समाचार पत्र, कभी विद्यालयों में हिंदी का पाठ्यक्रम, और कभी "इतना तो चलता है" कहकर लिखी जाने वाली अंग्रेजी-मय नए लेखकों की कृतियाँ देखकर कष्ट होता है. पर मन कहता है अब भी अच्छी हिंदी पढ़ने और लिखने वाले बाकी हैं. मेरा ये छोटा सा प्रयास उन्ही के लिए है. मेरी रचनाओं में भाषा और भाव दोनों ही से सम्बंधित कोई त्रुटि मिले तो अवश्य बताइयेगा.
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हिंदी
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ये तो अच्छा लिखा!
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