Sunday, May 20, 2012

कहानी

नई कहानी अंत नया
दुःख जीवन पर्यंत नया
माया को गाली देकर 
उपजा हर दिन संत नया

Tuesday, May 15, 2012

उन्मुक्त


सब बोले तुम हारोगी मैं जीतूँगी है मुझे पता 
चुप हूँ शांत अभी हूँ, हूँ मैं गूंगी अर्थ नहीं इसका 

दीवाली पर एक सुलगता हुआ पटाखा बुझा समझ
छेड़ रहे हो फट जाएगा फिर मत कहना बुरा हुआ

बुरा सुना, पत्थर खाए, ताने झेले पर हाँ इतना   
आप स्वयं पर तरस न खाया चाहे जितना कष्ट रहा 

औंधी नाव अँधेरा आँधी, उसके आगे अन्धा मोड़ 
बनी दामिनी पथ प्रदर्शिका ज्योंही बुझा हरेक दीया 

मुक्ति कहाँ जब परिभाषाएं बदल गई हों मुक्ति की
तदपि शाख से चिढ़ा रहा पिंजरे को शुक उन्मुक्त हुआ