Monday, July 16, 2012

नशा

नशा उतरे ना
ऐसे ही जीवन कट जाए

कहाँ ये अतिसुन्दर स्वप्न
ये परिकल्पनाएं
कहाँ वो सुबह का सर दर्द
दुनिया जब गोल नज़र आये

यहाँ भावनाएं प्रकट कर देने का सुख
वहाँ दुनिया भर की बाधाएँ

क्यों नहीं रुक जाता समय
यहीं, इससे पहले कि सुबह आये

4 comments:

  1. अनूप जी, पहले तो मेरी कविताओं को पढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद. आप मेरे सबसे पहले पाठक हुए. दूसरी बात ये कि 'वर्ड वेरिफिकेशन' क्या बाला है और इससे कैसे निजात पाई जाये?

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  2. कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया ...!!

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  3. बहुत धन्यवाद्. मेरे विचार में अब 'वर्ड वेरिफिकेशन' हट गया है.

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