पीली पुरानी पुस्तकों के पृष्ठ सी
क्षण भर लगा कि रातरानी की सुगंध
धुँधले पुराने चित्र सी अस्पष्ट सी
अनुभूति उसकी एक क्षण को आई थी
कल रात जब कुछ देर मैं सो पाई थी
की जा नहीं सकती कि जो कमरे में बंद
फिर भय मुझे किस बात का लगता रहा
वो साध्य वो आराध्य मेरा था कहाँ?
अविरल नहीं थे अश्रु पर बहते रहे
कुछ नींद से कुछ स्वप्न से लड़ते रहे
मैं थी स्वयं से क्षुब्ध या स्तब्ध थी
उसकी छवि बैठी वहीँ निःशब्द थी.
क्या अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद स्वाति जी